Sunday, October 17, 2010

मेरी सादादिली नहीं जाती

मेरी सादादिली नहीं जाती
उस की दीवानगी नहीं जाती
वो समझ जाए तो ग़नीमत है
बात दिल की कही नहीं जाती
ख्व़ाहिशें मेरी कम नहीं होती
उन की दर्यादिली नहीं जाती
दोस्ती उम्र भर नहीं रहती
उम्र भर दुश्मनी नहीं जाती
मैं यूँ ख़ामोश रह गई उन से
बात कड़वी सुनी नहीं जाती
“कमसिन” उन के सितम नहीं रुकते
अपनी भी ख़ुदसरी नहीं जाती




• कृष्णा कुमारी
“चिरउत्सव” सी – 368, मोदी हॉस्टल लाईन
तलवंड़ी, कोटा - 324005 (राजस्थान)
फोनः-0744-2405500,
मोबाइलः 9829549947

इश्क़ का आगाज़ है, कुछ मत कहो

ग़ज़ल

इश्क़ का आगाज़ है, कुछ मत कहो
नग़्माख्व़ा दिल – साज़ है, कुछ मत कहो
वो अभी नाराज़ है, कुछ मत कहो
दिल शिकस्ता साज़ है, कुछ मत कहो
प्यार भी करता है, गुस्से की तरह
उस का ये अंदाज़ है, कुछ मत कहो
बाँध कर पर जिसने छोड़े हैं परिन्द
वो कबूतर बाज़ हैं, कुछ मत कहो
चीख़ती हैं, बेजुबाँ ख़ामोशियाँ
ये वही आवाज़ है, कुछ मत कहो
अब है चिड़ियों का मुहाफ़िज़ राम ही
पहरे पे इक बाज़ है, कुछ मत कहो
“कमसिन” अपनी है ग़ज़ल जैसी भी है
हम को इस पर नाज़ है, कुछ मत कहो




• कृष्णा कुमारी
“चिरउत्सव” सी – 368, मोदी हॉस्टल लाईन
तलवंड़ी, कोटा - 324005 (राजस्थान)
फोनः-0744-2405500,
मोबाइलः 9829549947

जब तू पहली बार मिला था

ग़ज़ल
जब तू पहली बार मिला था
दिल इक गुञ्चे – सा चटका था
धूप में बारिश भीग रही थी
इन्द्रधनुष में चाँद खिला था
तू चुप था यह कैसे मानूं
मैंने सब कुछ साफ सुना था
सच ही मान लिया क्या तू ने
वो तो मैंने झूठ कहा था
अपनी हथेली पर मँहदी से
मैंने तेरा नाम लिखा था
दुख में मुझको छोड़ गया क्यूँ
तू ही तो मेरा अपना था
उस बारिश को कैसे भूलूँ
जब मैं भीगी, तू भीगा था
वो लम्हे कितने अच्छे थे
जिन मे तेरा साथ मिला था
उस दिन तुझ से मिलकर “कमसिन”
घर आकर इक गीत लिखा था

दिल लगाने की बात करते हो।




दिल लगाने की बात करते हो।
किस ज़माने की बात करते हो।।
लोग पानी को जब तरसते हैं।
मय पिलाने की बात करते हो।।
ऑसूओं से तो भर दिया दामन।
मुस्कुराने की बात करते हो।।
उम्र भर आग पर चला कर भी।
आज़माने की बात करते हो।।
सूलियाँ और सलीबें हँसती हैं।
सच बताने की बात करते हो।।
क्यूँ घड़ी भर की रोशनी के लिये।
घर जलाने की बात करते हो।।
याद में आ के बारहा “कमसिन”।
भूल जाने की बात करते हो।।

Sunday, October 10, 2010

ग़ज़ल संग तेरे है रहबर देख

ग़ज़ल
संग तेरे है रहबर देख
अब तो जग का मंजर देख
नभ पर ताला है तो क्या
पिंजरे में ही उड़ कर देख
शोलों पर सोती है ओस
आकर तो सड़कों पर देख
बन बैठे हैं शालिग्राम
चिकने-चुपड़े पत्थर देख
तू भी ध्रुव सा चमकेगा
तम को चीर निरंतर देख
ला छोड़ेंगी साहिल पर
मौजों से तो कह कर देख
पाप न कर भगवान से डर
बच्चों को मत कुढ़ कर देख
लिख तो डाले ग्रंथ हज़ार
ढाई आखर पढ़कर देख
ख़ुद से बाहर आ “कमसिन”
पीर पराई सह कर देख



• कृष्णा कुमारी “कमसिन”
“चिरउत्सव” सी – 368, मोदी हॉस्टल लाईन
तलवंड़ी, कोटा - 324005 (राजस्थान)
फोनः-0744-2405500,
मोबाइलः 9829549947