Tuesday, October 18, 2011

इश्क़ का आगाज़ है, कुछ मत कहो

ग़ज़ल


इश्क़ का आगाज़ है, कुछ मत कहो
नग़्माख्वा दिल – साज़ है, कुछ मत कहो
वो अभी नाराज़ है, कुछ मत कहो
दिल शिकस्ता साज़ है, कुछ मत कहो
प्यार भी करता है गुस्से की तरह
उस का यह अदांज़ है कुछ मत कहो
बाँध कर पर जिसने छोड़े हैं परिन्दें
वो कबुतर बाज़ हैं कुछ मत कहो
चीख़ती हैं, बेजुबाँ ख़ामोशियाँ
ये वही आवाज़ है, कुछ मत कहो
अब है चिड़िया का मुहाफ़िज़ राम ही
पहरे पे इक बाज़ है, कुछ मत कहो
कमसिन अपनी है ग़ज़ल जैसी भी है
हम को इस पर नाज़ है, कुछ मत कहो

3 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति।

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    1. आपका ब्लॉग देखा ....wow आनंद आ गया अपना ईमेल या फ़ोन no .दीजिये .हमें भी घुमने का बहुत चाव हे .शुक्रिया .

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