Monday, September 26, 2011

ग़ज़ल

वो रोता है क़िस्मत में बच्चा नहीं है
ये रोता है बेटी है बेटा नहीं है
सुहा जाए कब दिल को क्या दिल ही जाने
किसी का भी बस दिल पे चलता नहीं है
असामी करोड़ों का होगा तो होगा
किसी को वो कौड़ी भी देता नहीं है
जो जीवन को जाना तो “हव्वा” कराही
हक़ीक़त है आदम ! ये सपना नहीं है
वो धनवान हैं जो हैं बेइल्मो - क़ाहिल
जो दाना है पास उन के पैसा नहीं है
वो क्या कर सकेगा ज़माने की ख़ातिर
कभी जिस से घर अपना छूटा नहीं है
मुहब्बत के सागर का तल है न साहिल
जो डूबा है इस में वो उभरा नहीं है
अगर चार होती हैं उल्फ़त में ऑखें
तो हर हाल में प्रेम अंधा नहीं है
हर इक शख़्स बेमिस्ल होता है “कमसिन”
कोई भी किसी और जैसा नहीं है

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