Saturday, July 30, 2011

‘फिर और महिला दिवस’

एक बार फिर
पुरूषों ने मना लिया
एक और ‘महिला दिवस’
ज़माने भर के ताम-झाम
औपचारिकतायें
कर ली गई पूरी
ख़ुब बढ़ा-बढ़ा कर
चढ़ा-चढ़ा कर
किया गया नारी को
महिला मण्डित
मीडिया ने भी
बहती गंगा में
मल-मल कर
धोये हाथ
चंद चर्चित नारियों को
करके ‘हाईलाईट’
पृष्ठ भर-भर कर
बटोर ली वाही-वाही
(उन महिलाओं का क्या
जिनके लिये 8 मार्च
महज काली लकीरें हैं)
आ ……… हा……..आ……..हा
महिलायें हैं कि
फूली नहीं समाई
लेकिन
इस भारी-भरकम
शोर-शराबे में
कुचल कर रह गई
उन महिलाओं की
हृदय-विदारक चीख़-पुकार
हर दिन की तरह
इस दिन भी आई
जो किसी न किसी तरह
कोई न कोई / अपराध की
चपेट में
हर सैंतालीस मिनिट में
हुई बलात्कार की शिकार
किया गया / हर चौवालीस
मिनट में अपहरण
इसी दिन भी
उन्नीस महिलाओं को
दहेज की भभकती आग में
जलना पड़ा / धू – धू कर
छेड़छाड़ से हुई आहत
चौरासी नारियाँ
हर तीसरी मादा को
सहना पड़ा / क़रीबी रिश्तेदारों
का अत्याचार
चलिए / घरेलु हिंसा को
मारिए गोली
लेकिन (निर्ममता की सारी
हदें पार कर)
धारदार कैंची से
वात्सल्य-रस में / शराबोर
असंख्य मासूम / मादा-भ्रूणों के
छोटे…..छोटे ……..छोटे
टुकड़े करते / खूनी हाथ
बना देते हैं / जिसकी कोख को
क़त्लगाह…………!!!
वह
बेचारी औरत ???

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