ग़ज़ल
जब तू पहली बार मिला था
दिल इक गुञ्चे – सा चटका था
धूप में बारिश भीग रही थी
इन्द्रधनुष में चाँद खिला था
तू चुप था यह कैसे मानूं
मैंने सब कुछ साफ सुना था
सच ही मान लिया क्या तू ने
वो तो मैंने झूठ कहा था
अपनी हथेली पर मँहदी से
मैंने तेरा नाम लिखा था
दुख में मुझको छोड़ गया क्यूँ
तू ही तो मेरा अपना था
उस बारिश को कैसे भूलूँ
जब मैं भीगी, तू भीगा था
वो लम्हे कितने अच्छे थे
जिन मे तेरा साथ मिला था
उस दिन तुझ से मिलकर “कमसिन”
घर आकर इक गीत लिखा था
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