ग़ज़ल
इश्क़ का आगाज़ है, कुछ मत कहो
नग़्माख्व़ा दिल – साज़ है, कुछ मत कहो
वो अभी नाराज़ है, कुछ मत कहो
दिल शिकस्ता साज़ है, कुछ मत कहो
प्यार भी करता है, गुस्से की तरह
उस का ये अंदाज़ है, कुछ मत कहो
बाँध कर पर जिसने छोड़े हैं परिन्द
वो कबूतर बाज़ हैं, कुछ मत कहो
चीख़ती हैं, बेजुबाँ ख़ामोशियाँ
ये वही आवाज़ है, कुछ मत कहो
अब है चिड़ियों का मुहाफ़िज़ राम ही
पहरे पे इक बाज़ है, कुछ मत कहो
“कमसिन” अपनी है ग़ज़ल जैसी भी है
हम को इस पर नाज़ है, कुछ मत कहो
• कृष्णा कुमारी
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